type 2 diabetes and pregnancy

गर्भावस्था में शुगर का खतरा कब बढ़ जाता है?

परिचय – गर्भावस्था में शुगर


गर्भावस्था में शुगर, जिसे गेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है, एक अस्थायी स्थिति है जिसमें गर्भवती महिला के शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। यह हार्मोनल बदलावों के कारण होता है और माँ व बच्चे दोनों के लिए जोखिम भरा हो सकता है यदि समय पर जाँच और नियंत्रण न किया जाए।




गेस्टेशनल डायबिटीज के कारण


गेस्टेशनल डायबिटीज के मुख्य कारण हार्मोनल बदलाव होते हैं जो गर्भावस्था के दौरान शरीर की इंसुलिन पर प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं। जब प्लेसेंटा से निकलने वाले हार्मोन शरीर की इंसुलिन को ठीक से काम नहीं करने देते, तो ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने लगता है। इसके अलावा, अधिक वजन, पारिवारिक डायबिटीज़ का इतिहास, उम्र (30 वर्ष से अधिक), और पिछली गर्भावस्था में शिशु का अधिक वजन होना भी इसके जोखिम को बढ़ाते हैं।



गर्भावस्था में शुगर का खतरा कब बढ़ता है?


गर्भावस्था में शुगर का खतरा आमतौर पर गर्भ के दूसरे या तीसरे तिमाही (24 से 28 सप्ताह) के बीच बढ़ता है। इस समय प्लेसेंटा से निकलने वाले हार्मोन इंसुलिन की कार्यक्षमता को बाधित करते हैं, जिससे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर असामान्य रूप से बढ़ सकता है। अगर महिला पहले से अधिक वजन रखती है, उम्र 30 से ऊपर है, या परिवार में डायबिटीज़ का इतिहास है, तो यह खतरा और भी अधिक हो जाता है। इसलिए इसी समय पर गेस्टेशनल डायबिटीज की नियमित जाँच कराना आवश्यक होता है।



किन महिलाओं को अधिक जोखिम होता है?


गर्भावस्था में शुगर (गेस्टेशनल डायबिटीज़) का खतरा निम्नलिखित महिलाओं को अधिक होता है:

1. जिनका वजन अधिक हो (ओवरवेट या मोटापा)

2. जिनकी उम्र 30 वर्ष से अधिक हो

3. जिनके परिवार में डायबिटीज़ का इतिहास हो

4. जिन्हें पहले की गर्भावस्था में गेस्टेशनल डायबिटीज़ हो चुकी हो

5. जिनका पिछला शिशु 4 किलो या उससे अधिक वजन का हुआ हो

6. जिन्हें पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) हो

7. जिनका ब्लड प्रेशर हाई रहता हो

8. जिनका जीवनशैली अधिकतर बैठे रहने वाली हो (sedentary lifestyle)

ऐसी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर ब्लड शुगर की जांच अवश्य करवानी चाहिए।



इसके लक्षण क्या हो सकते हैं?


गर्भावस्था में शुगर (गेस्टेशनल डायबिटीज़) के लक्षण अक्सर सामान्य गर्भावस्था के लक्षणों जैसे लग सकते हैं, लेकिन कुछ संकेतों पर ध्यान देना जरूरी होता है:

1. अत्यधिक प्यास लगना

2. बार-बार पेशाब आना

3. अचानक और अत्यधिक थकान महसूस होना

4. धुंधला दिखाई देना (ब्लर विज़न)

5. भूख अधिक लगना लेकिन वजन का कम बढ़ना

6. पेशाब में शुगर की मौजूदगी (जांच के दौरान)

इन लक्षणों की पुष्टि के लिए नियमित ब्लड शुगर जांच ज़रूरी होती है, क्योंकि कई बार गेस्टेशनल डायबिटीज़ बिना किसी स्पष्ट लक्षण के भी हो सकती है।



जाँच कब और कैसे की जाती है?


गर्भावस्था में शुगर की जाँच आमतौर पर 24 से 28 सप्ताह के बीच की जाती है, लेकिन यदि महिला को जोखिम अधिक हो, तो डॉक्टर पहले भी जांच की सलाह दे सकते हैं।

जाँच की प्रक्रिया:

1. ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट (GCT):

इसमें बिना खाली पेट के 50 ग्राम ग्लूकोज दिया जाता है और एक घंटे बाद ब्लड शुगर की जांच होती है। यदि शुगर स्तर सामान्य से अधिक हो, तो अगला टेस्ट किया जाता है।

2. ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (GTT):

यह टेस्ट खाली पेट किया जाता है। पहले ब्लड सैंपल लिया जाता है, फिर 75 या 100 ग्राम ग्लूकोज दिया जाता है। इसके बाद 1, 2 और 3 घंटे बाद ब्लड सैंपल लिए जाते हैं।

अगर इन टेस्ट्स में शुगर स्तर तय मानकों से अधिक आता है, तो गेस्टेशनल डायबिटीज़ की पुष्टि होती है।

नोट:

जाँच समय पर कराना बेहद जरूरी है, ताकि माँ और शिशु दोनों सुरक्षित रहें।



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शुगर बढ़ने के दुष्प्रभाव माँ और बच्चे पर


गर्भावस्था में शुगर का स्तर बढ़ने (गेस्टेशनल डायबिटीज़) के कई गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जो माँ और शिशु दोनों को प्रभावित करते हैं:

माँ पर दुष्प्रभाव:

  • प्री-एक्लेम्प्सिया (High BP और सूजन की स्थिति)

  • सिज़ेरियन डिलीवरी की संभावना बढ़ना

  • गर्भकाल के बाद टाइप 2 डायबिटीज़ होने का जोखिम

  • बार-बार यूरिन इंफेक्शन

  • अत्यधिक एमनियोटिक फ्लूइड (Polyhydramnios)

शिशु पर दुष्प्रभाव:

  • जन्म के समय अधिक वजन (4 किलो या अधिक)

  • जन्म के बाद ब्लड शुगर का गिरना (हाइपोग्लाइसीमिया)

  • असमय जन्म या जन्म से पहले डिलीवरी का खतरा

  • नवजात में सांस लेने में तकलीफ (Respiratory distress syndrome)

  • बड़े होकर मोटापा या टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा

इसलिए गर्भावस्था में ब्लड शुगर को नियंत्रित रखना माँ और बच्चे दोनों के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।



रोकथाम के उपाय और आहार सलाह


गेस्टेशनल डायबिटीज़ की रोकथाम के उपाय:

1. नियमित व्यायाम - हल्की वॉक या योग करें।

2. वजन नियंत्रण - स्वस्थ वजन बनाए रखें।

3. ब्लड शुगर की नियमित जांच - डॉक्टर की सलाह अनुसार शुगर लेवल चेक कराएं।

4. तनाव कम करें - मेडिटेशन और गहरी साँसों से मानसिक शांति बनाए रखें।

5. पूर्ण नींद लें - रोज़ाना 7-8 घंटे की नींद सुनिश्चित करें।

आहार सलाह:

1. जटिल कार्बोहाइड्रेट लें - ओट्स, साबुत अनाज, ब्राउन राइस आदि।

2. प्रोटीन युक्त भोजन - दालें, पनीर, दूध।

3. फाइबर युक्त सब्जियाँ - लौकी, पालक, भिंडी आदि।

4. मीठा और प्रोसेस्ड फूड से बचें - मिठाई, सफेद ब्रेड, सॉफ्ट ड्रिंक्स।

5. बार-बार छोटे भोजन करें - दिनभर में 5-6 बार खाएं।

6. अधिक पानी पिएं - हाइड्रेशन बनाए रखें।



घरेलू देखभाल बनाम चिकित्सकीय हस्तक्षेप


घरेलू देखभाल:

1. स्वस्थ आहार और जीवनशैली - संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और मानसिक शांति से गेस्टेशनल डायबिटीज़ को नियंत्रित किया जा सकता है।

2. ब्लड शुगर की निगरानी - घर पर शुगर स्तर की नियमित जाँच से स्थिति पर नज़र रखी जा सकती है।

3. प्राकृतिक उपचार - जैसे करेला, नीम के पत्ते, अलसी का सेवन कुछ मामलों में मददगार हो सकते हैं (लेकिन डॉक्टर की सलाह जरूरी है)।

चिकित्सकीय हस्तक्षेप:

1. इंसुलिन या दवाइयाँ - यदि घरेलू उपायों से शुगर नियंत्रण में नहीं आता, तो डॉक्टर इंसुलिन या अन्य दवाइयाँ निर्धारित कर सकते हैं।

2. हॉस्पिटल में निगरानी - गंभीर मामलों में, डॉक्टर अस्पताल में विशेष निगरानी की सलाह दे सकते हैं।

3. विशेष आहार योजना - डॉक्टर और डायटिशियन से सलाह लेकर आहार की योजना तैयार करवाई जा सकती है।

घरेलू देखभाल से शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन यदि स्थिति गंभीर हो या घरेलू उपायों से कोई फर्क न पड़े, तो चिकित्सकीय हस्तक्षेप आवश्यक है।



श्री च्यवन का आयुर्वेदिक समाधान

 

डायबिटीज केयर किट - हमारे आयुर्वेद विशेषज्ञों ने मधुमेह रोगियों के लिए एक आयुर्वेदिक दवा तैयार की है - डायबिटीज केयर किट। यह आपके रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह आयुर्वेदिक दवा प्राकृतिक अवयवों के माध्यम से समग्र कल्याण को बढ़ावा देने, संतुलित रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में सहायता के लिए सावधानीपूर्वक तैयार की गई है।

 

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श्री च्यवन डायबिटीज केयर किट


किट में चार प्रकार की आयुर्वेदिक दवाएं शामिल हैं जो रक्त शर्करा के स्तर के प्रबंधन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं:


  • मधुमोक्ष वटी
  • चंद्रप्रभा वटी  
  • करेला और जामुन रस
  • गिलोय का रस

 


1. मधुमोक्ष वटी - श्री च्यवन आयुर्वेद की मधुमोक्ष वटी शरीर में स्वस्थ रक्त शर्करा के स्तर का समर्थन करती है और इसके कारण होने वाली समस्याओं को दूर करती है।


    सामाग्री: मधुमोक्ष वटी में उपयोग की जाने वाली मुख्य सामग्रियां वसंत कुसुमाकर, मधुमेह हरिरासा, नीम पंचांग, जामुन बीज, गुड़मार, करेला बीज, तालमखना, जलनीम, आंवला और बहेड़ा हैं। 


    कैसे उपयोग करें: यदि रोगी का रक्त शर्करा स्तर 200mg/dl है, तो उसे भोजन से पहले या चिकित्सक के निर्देशानुसार दिन में दो बार 2 गोली लेनी होगी।

     


    2. चंद्रभा वटी - श्री च्यवन आयुर्वेद की चंद्रप्रभा वटी स्वस्थ यूरिक एसिड स्तर का समर्थन करती है और समग्र कल्याण में योगदान दे सकती है।


      सामाग्री: इसमें आंवला, चंदन, दारुहरिद्रा, देवदारू, कपूर, दालचीनी और पीपल शामिल हैं।


      कैसे इस्तेमाल करें: रात को सोने से पहले 1 गोली का सेवन करें। या चिकित्सक के निर्देशानुसार।

       


      3. करेला जामुन रस - श्री च्यवन करेला जामुन रस चयापचय स्वास्थ्य का समर्थन करता है और शरीर में संतुलित रक्त शर्करा के स्तर में योगदान दे सकता है और जामुन में जंबोलिन और जंबोसिन होता है, जो चयापचय स्वास्थ्य का समर्थन करने के लिए माना जाता है।


        सामाग्री: इस जूस/रस की मुख्य सामग्री करेला और जामुन का रस है।


        कैसे उपयोग करें: दोपहर के भोजन और रात के खाने के 1 घंटे बाद या चिकित्सक के निर्देशानुसार, दिन में दो बार 10 मिलीलीटर का सेवन करें।

         


        4. गिलोय रस: गिलोय रस एक हर्बल और आयुर्वेदिक पूरक है जो अपने संभावित स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है, जिसमें समग्र कल्याण और शरीर में स्वस्थ रक्त शर्करा के स्तर का समर्थन करना शामिल है।


          सामाग्री: इसमें गिलोय से निकाला गया रस होता है।


          कैसे उपयोग करें: बच्चों के लिए 5ml-10ml,


          वयस्कों के लिए 10ml-20ml, दिन में तीन बार। या चिकित्सक के निर्देशानुसार। 

           

           

          निष्कर्ष: सावधानी और समय पर नियंत्रण क्यों ज़रूरी है?


          गर्भावस्था में शुगर (गेस्टेशनल डायबिटीज़) का समय पर पहचान और नियंत्रण माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सावधानी से गर्भावस्था के दौरान शुगर के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे सिज़ेरियन डिलीवरी, प्री-एक्लेम्प्सिया, और शिशु के जन्म में जटिलताओं का जोखिम कम होता है। यदि समय रहते इसे नियंत्रित न किया जाए, तो यह माँ में टाइप 2 डायबिटीज़ और शिशु में मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।

          इसलिए समय पर जाँच, आहार नियंत्रण, और डॉक्टर से मार्गदर्शन लेना बेहद जरूरी है, ताकि गर्भावस्था सुरक्षित और स्वस्थ हो।

           

           

           

           

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          Disclaimer- इस ब्लॉग में प्रस्तुत जानकारी केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है और यह चिकित्सा, स्वास्थ्य, या चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। इस ब्लॉग में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल शिक्षात्मक और सूचना प्रदान करने का है और यह किसी भी विशिष्ट चिकित्सा स्थिति, निदान, या उपचार के लिए सलाह नहीं प्रदान करती है।
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